Silhouette of mother and her two little children against starry night sky

Kuchh ‘Kam’ hai

Hindi poem by Pavas इक चूल्हे पर तवा चढ़ा था,इक चूल्हे पर चढ़ा पतीला,खाना खाने बैठा बच्चा,था स्वभाव से वो नखरीला हरेक कौर में मुँह…

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इक शहर हो घर जैसा – योगेंद्र परांजपे की कविता

बहुत कम हो दिन स्कूल के, छुट्टियां भरपूरएक शहर हो घर जैसा, घर से काफी दूर ‍॥ हर कोने पर चाट का ठेला, हर मौसम…

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