Hindi poem by Pavas
इक चूल्हे पर तवा चढ़ा था,
इक चूल्हे पर चढ़ा पतीला,
खाना खाने बैठा बच्चा,
था स्वभाव से वो नखरीला
हरेक कौर में मुँह था बनता,
बात-बात में दिखता था ग़म,
एक बात पर था वो अटका,
माँ, भोजन में है ‘कुछ’ तो कम
बङी समस्या हो गई भारी,
समझ-समझ के मम्मी हारी,
नमक चख लिया, मिर्च देख ली,
स्वाद दाल थी, मस्त तरकारी
सलाद, रायता, और मिठाई,
रोटी भी थी खूब मुलायम,
अङियल बच्चा, हैरां माँ थी,
वो चीज भला अब क्या थी कम?
बात समझ फिर माँ को आई,
समझी मैं, क्या तेरा ग़म है,
कमी नहीं है कुछ खाने में,
तेरी अभी भूख ही कम है
आसानी से कुछ भी मिलता,
चीजें हरदम लगें अधूरी,
शाम को भोजन यही मिलेगा,
तब होगी ये इच्छा पूरी
— पावस