गुड़िया मेरी बड़ी सयानी
ऐसा कहती मेरी नानी
पर अम्मा कहती हूँ मैं बुद्धू
ढीठ, बिगड़ैल, यकदम अकड़ू
बाबा मुझको सीधी कहते
दादा मुझको मीठी कहते
कहती टीचर मुझे मेधावी
सब विषयों पर पड़ती भारी
पर मैं खुद को क्या कहती हूँ?
क्या सोचूँ हूँ, क्या सहती हूँ?
मैं कहती हूँ खुद को नटखट
मुझको भाती है सब खटपट
मिठाई खा जाती हूँ चटपट
अम्मा देखे जाए यकटक
डांट मुझे जब पड़ जाती है
आँसू डब डब भर जाती है
बाबा फिर मिठाई लाते
और मेरा मन बहलाते
माँ कहती दुख सुख का नाता
ऐसे ही बड़ा कर जाता
थोड़ा रोना थोड़ा हँसना
निराशा में पर कभी न धंसना
किन्तु ये भारी-भरकम बातें
मुझको कहाँ समझ आती हैं?
बच्ची हूँ, बच्ची सी रहूँगी,
समझने को तो उमर बाकी है !