सावन पर हिन्दी कविता Hindi poem on Saavan

This poem is by Sonal Rastogi ji

एक डुबकी गंग धार में
कांवर के त्यौहार में
तन मन सब धुल जाए
हर हर गंगे हो जाए


सावन के उस मेले में
मन भर पाओ धेले में
सारा आँचल भर जाए
जय बम भोले हो जाए


दूध दही और शहद
धतूरा भांग और मृग-मद
बेलपत्री सी चढ़ जाऊं
शायद मैं भी तर जाऊं


घर से इतनी दूरी है
ऐसी ही मजबूरी है
चुल्लू भर आचमन लिया
शायद मैं भी तर जाऊं