कठिन समय में पढ़ाना: डॉ सपन कुमार के साथ एक हृदयस्पर्शी बातचीत

श्रेया अगरवाल द्वारा

साल २०२०, एक साल, जब सब कुछ थम सा गया। COVID-19 के प्रकोप व लॉकडाउन की वजह से हमारे जीवन में एक पूर्णविराम सा लग गया।  स्कूल, कॉलेज, बाजार, सब बंद हो गए। हम सभी को अपने घर पे रहकर अपना काम ऑनलाइन जारी रखना पड़ा। 

हालांकि स्कूल बंद थे, हमें ऑनलाइन क्लास के माध्यम से पढ़ाया गया।  लेकिन सबके पास ऑनलाइन क्लास अटेंड करने के लिए फ़ोन या लैपटॉप नहीं होता। हर स्कूल के पास इतने संसाधन नहीं होते की वे ऑनलाइन स्कूल करवा पाएं। 

झारखण्ड के दुमका के एक स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षक डॉ सपन कुमार ने इसके बारे में एक योजना बनाई। उन्होंने एक ऐसा आईडिया विकसित किया जिस से शिक्षा सीधे बच्चे के घर तक पहुंच सके। उन्होंने सबके घर में एक ब्लैकबोर्ड पेंट किया और लाउडस्पीकर की व्यवस्था की जिससे हर बच्चा शिक्षक को सुन सके। 

इनके इस आईडिया के लिए इन्हे भारत में बहुत से पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। झारखण्ड के बेस्ट टीचर अवार्ड और हैदराबाद के इनोवेशन अवार्ड से इनको सम्मानित किया गया है। झारखण्ड व छत्तीसगढ़ के CM ने इनकी बहुत प्रशंसा की है। छत्तीसगढ़ के CM ने इनको नवंबर 2021 के ‘National Education Conclave’ में आमंत्रित किया और यहाँ भी इनको सम्मानित किया गया। MyGOV वेबसाइट पे भी इनका प्रमोशन किया गया था। इनके प्रशंसकों में हमारे प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी भी हैं जिन्होंने इनकी प्रशंसा अपने 31 जनवरी 2021 के मन की बात कार्यक्रम में की थी।

इनकी प्रशंसा सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में हो रही है। कनाडा, अर्जेंटीना, कोलंबिया, जापान, अमेरिका, UK जैसे देशों में इनकी प्रशंसा हो रही है। जापान के ओसाका यूनिवर्सिटी ने इनके मॉडल की बहुत सराहना की है। टोक्यो, लंदन, और न्यू यॉर्क जैसे शहरों में इनके होर्डिंग भी लगे हैं।

सर अपने बचपन और शिक्षा के बारे में कुछ बताएं? आपको शिक्षक बनने के लिए किस बात ने प्रेरित किया?

मैं देश के एक ऐसे जगह से हूँ जो एक पिछड़ा क्षेत्र है। मेरा जनम झारखण्ड में दुमका जिला में हुआ, और मैं भी माध्यम वर्ग से ही हूँ। मेरे पिताजी की मृत्यु काम उम्र में ही हो गयी थी। उस कठिन समय में पढाई को जारी रखना मुश्किल था।

मुझे यह अनुभव हुआ की इस देश में, और जिस क्षेत्र में हम रहते हैं, और पूरी दुनिया में, कोई कुछ बदल सकता है, वह शिक्षा बदल सकती है, एक शिक्षक बदल सकता है। इसलिए मेरे मन में बचपन से ही था कि मैं इस क्षेत्र में आऊं, और आने वाले समय में अपना एक छोटा सा योगदान देश को दे सकूँ, वो मैं शिक्षक बन के दे सकूँ, और आज मैं वो कर रहा हूँ।

आपको हर  घर में ब्लैकबोर्ड और लाउडस्पीकर की व्यवस्था करने का यह मास्टर-आइडिया कहाँ से मिला जिससे कि छात्र अपनी पढ़ाई कर सकें?

जब २०२० में दुनिया में सब कुछ ठप हुआ, कोरोना के कारण, और पूरी दुनिया में काफी कठिन समय था, सरकार की गाइडलाइन्स आयी थी की कोई घर से बहार न निकले, और अपनी जान बचाएँ। हमारा स्कूल एक आदिवासी इलाके में है। उस इलाके में बच्चों के माता-पिता ने कभी भी पढाई नहीं की है। ऐसे घरों के बच्चों को जब मेरी नियुक्ति हुई, संसाधन के साथ में, बच्चों को स्कूल तक लाना बहुत मुश्किल था।

हर माता पिता अपने बच्चों की पढाई के बारे में बहुत सोचते हैं, लेकिन हमारी तो यही कठिनाई थी की हमारे इलाके के माता-पिता ने पढाई ही नहीं की, और उनके बच्चों को मैं स्कूल लाया।

२०२० में जब लॉकडाउन आया, तो मेरी नींद गायब थी। मैं सोचता था, आखिर मैं बच्चों के लिए क्या करू। मैंने बहुत सोचा, और फिर मुझे आईडिया आया। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है। हमें यहाँ बहुत कठिनाई है, सुविधाएं यहाँ बहुत काम हैं, नेटवर्क, मोबाइल फ़ोन की समस्या है, लेकिन एक शिक्षक हमेशा समस्या में संभावना को ढूंढता है। और एक शिक्षक होते हुए, मेरा मन्ना है की देश तब ही आगे बढ़ेगा, जब हमारा बच्चा पढ़ेगा।

जब २०२० में सब कुछ बंद हुआ, स्कूल फिर खुलना का कोई समय नहीं था। मैंने हर दिवार पर, नेचुरल रंगों से बच्चों के लिए ब्लैकबोर्ड बना दिया। मुझे सभी ने इसमें काफी मदद की। हमारे समुदाय ने, स्कूल ने, समिति ने, सभी से  संयोग मिला। मैं सबको ठीक से समझाने में सफल रहा।

आपने विद्यार्थी के ज्ञान और उसकी प्रगति का मूल्यांकन कैसे किया?

ज्ञान दो तरह का होता है: ज्ञान, और किताबी ज्ञान। ये जो ज्ञान है, हमारे बच्चे जो जंगल के हैं, कृषि क्षेत्र के हैं, वो कृषि, पेड़-पौधों, खेती, मछली पालन आदि के बारे में जानता है। उसके पास काफी सारा ज्ञान है, जो की किताबी ज्ञान नहीं है। किताबी ज्ञान स्कूल न आने के कारण उसके पास नहीं है। बाकी जो शहर के बच्चे हैं, उनके पास यह ज्ञान निश्चित तौर पर पढ़ने के बाद मिलेगा, लेकिन हमारे बच्चों ने आस-पास से ही सीखा है। हम हर समय मानते हैं, बच्चों के पास ज्ञान काफी अधिक है, ये बात अलग है की उनके पास किताबी ज्ञान नहीं है।

मूल्यांकन के लिए हम लोग बच्चों का ‘brainstorming ‘ करवाते हैं। हमारे देश में भी प्राचीन काल में, चाहे नालंदा हो या तक्षशिला हो, बच्चे self – learning  से  सीखते थे। एक शिक्षक तो एक catalyst होता है, वो सिर्फ बच्चों को एक रास्ता दिखाता है।

जो ब्लैकबोर्ड बना हुआ है, बच्चों की प्रॉब्लम वहां जाकर सॉल्व करते हैं। अब अगर बच्चे का मूल्यांकन करना है, की ‘learning outcomes ‘ क्या मिला , तो हम किसी भी विषय पर प्रश्न दे देते हैं, और वो खुद सॉल्व करते हैं । काम है, क्यूंकि COVID है,  हम बहुत अधिक बच्चों से मिल नहीं सकते हैं।   

हम चाहते हैं हमारे बच्चे देश के अच्छे इंसान बनें । हमारा बच्चा कभी नहीं बोलता कि उसे डॉक्टर, इंजीनियर, बनना है, वो हमेशा बोलता है कि उससे भारत का अच्छा इंसान बनना है। उसमें डिसिप्लिन होना चाहिए, माँ-बाप की क़द्र करे, अपने समाज में अच्छा नागरिक बने, इसके लिए उसके अंदर नैतिकता, और स्किल्स होने चाहिए, और किताबी ज्ञान होना चाहिए, वो मैं उनको बताता हूँ।

हर किसी को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, आपके सामने सबसे बड़ी चुनौतियां क्या थीं?

सबसे पहले तो COVID था। मेरे घर से स्कूल १० किमी दूर है। डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर से ४५-५० किमी दूर है। ऐसे में घर से बहार निकलना, क्यूंकि COVID था, और वहां जाकर बच्चों को पढ़ाना, और खुद को बचाना, लोगों को जागरूक करना की कैसे अपने आप को बचाना है, ये बहुत मुश्किल था।

संसाधन की भी काफी कमी थी। यह क्षेत्र काफी पिछड़ा है। इस इलाके में आने-जाने के रास्तों से लेकर यहाँ मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है पढ़ाने के लिए। मेरे पास संसाधन सीमित थे, और फिर यह स्कूल गवर्नमेंट स्कूल है, तो सरकार का budget  भी सीमित होता है। उस budget में सारा काम करना, ये मुश्किल था।

मैंने इसमें एक रास्ता ढूंढा। प्रकृति में जो भी चीज़ें उपलब्ध हैं, उसका उपयोग करना मैंने बच्चों को सिखाया और उसी से ही मैंने अपनी कठिनाई को समाप्त करने का प्रयास किया। मैंने बच्चों को chalk बनाना सीखा दिया। जंगल में से पत्तों से चटाई बनाना सिखाया। प्रधानमंत्री का भी सफाई पे बहुत ध्यान है, की देश हमारा स्वछता की तरफ जाये और मैं भी इसे मानता हू। मैंने अपने बच्चों को भी गॉंव को साफ सुथरा रखना सिखाया है। जंगल में से ही सामान लेकर मैंने बच्चों को झाड़ू बनाना सिखाया है।

आपकी इस मेहनत का आपको परिणाम क्या मिला?

मुझे उस दिन का इंतज़ार है, जब पूरी दुनिया में हमारे इलाके के बच्चे देश में परचम लहराएंगे और एक अच्छा इंसान बनने के साथ अपनी देश की सेवा में, जिस भी सेक्टर में वो जाये, वहां से सेवा करे। ऐसा कोई, जो देश का एक अच्छा नागरिक बने, राष्ट्रप्रेम से भरा हुआ हो, ऐसा इंसान हम सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं । एक शिक्षक का एक दायित्व होता है, की हर समय, देश के विकास के लिए वह सोचे, और मैं शिक्षक होने के नाते, मैं अपनी एक छोटी भूमिका निभा रहा हूँ। हर एक माता-पिता, जो काफी गरीब हैं, उनके घर में जब खुशाली आएगी, तब हमें ख़ुशी मिलेगी ।

आज हमारे स्कूल में ३४० बच्चे हैं, २०२० में ३०० थे, और बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कई गाओं और क्षत्रों के बच्चे वहां आ रहे हैं। अभिभावक को मैं motivate कर पाया हूँ। मैं उनको जागरूक कर पाया हूँ । कोरोना से हमारे इलाके में कोई भी संक्रमित नहीं हुआ, जबकि मैंने रोज़ क्लासेज ली। हमारा स्कूल, दुनिया का पहला स्कूल है, जहाँ (छुट्टियों के दिन को छोड़कर) एक भी दिन पढाई नहीं रुकी है।

स्वयं शिक्षक होने के नाते, कोरोना के समय विद्याथियों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए क्या किया जा सकता था?

पहले तो मुझे लगता है, पूरा देश में एक ही syllabus होना चाहिए।

दूसरा, जैसे कि मुझे मालूम होता है, किसी भी देश के गरीब बच्चे हों, एक शिक्षक का दायित्व बनता है, कि वैसे बच्चों के लिए कुछ न कुछ alternate  व्यवस्था, उस परिस्थिति के अनुसार, उन बच्चों के लिए, जिस चीज़ कि आवश्यकता है, उसका इंतज़ाम करना चाहिए।

किताबें तो अपनी जगह पे हैं ही, बच्चों को जब ज्ञान मिलेगा, वह किताब कि बातें तो पढ़ ही लेगा।  लेकिन निश्चित तौर पैर, ऐसा बच्चों को स्कूल से जोड़कर रखना बहुत ज़रूरी है। यदि ये बच्चे नहीं पड़ता, तो सभों को बहुत मुश्किलें होती हैं। लड़कियों कि ‘child marriage ‘ हो जाती है, माता-पिता के साथ बच्चे पलायन कर जाते हैं, क्यूंकि वे गरीब घर के होते हैं, वो child labour के शिकार हो जाते हैं।

अभी जो स्कूल खुल रहे हैं, जो UNICEF की हमारी देश की रिपोर्ट है, जो drop out की संख्या है, वो काफी अधिक है। लेकिन हमने जो ब्लैकबोर्ड पे पढ़ाया, जो ‘मोहल्ला स्कूल’, जिसका अनुकरण पुरे स्कूल में हुआ है, इसका काफी अधिक फायदा हुआ है। ये मॉडल पुरे दुनिया में आज भी implement किया जा सकता है , जहाँ का स्कूल आज भी बंद है। ये एक zero investment मॉडल है।       

ऐसे बहुत से बच्चे होते हैं जिनके पास पढ़ने के लिए संसाधन नहीं होते, ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ क्या किया जाना चाहिए?

हर किसी को इसके बारे में सोचना होगा की अगर बच्चे नहीं पढ़ेंगे, तो उस परिवार की भी स्थिति ख़राब होगी, और अगर उस परिवार की स्थिति ख़राब होगी, उस गांव की, उस डिस्ट्रिक्ट की, उस राज्य की, और देश की स्थिति खराब हो सकती है। सभी को सोचना पड़ेगा की उस बच्चे के लिए क्या कर सकते हैं।

जो ब्लैकबोर्ड बने हैं मेरे गांव में, उसके साथ में हिंदी, अंग्रेजी, गणित के वर्णमाला के साथ में, किताबों को भी मैंने दीवारों पे लिख दिया है। आते जाते सभी लोग उसको देखते हैं।

बच्चों के परिवार को भी motivate करना ज़रूरी है ताकि घर में भी रहकर उसकी पढाई रुके नहीं। जिसके पास कुछ भी नहीं है, और अगर किताब उससे दूर हो जाएगी, तो हमारा देश बहुत पीछे हो जायेगा।

बच्चों को जो पारम्परिक सलाहें दी जाती हैं, उनके अलावा आप उनको क्या सलाह देना चाहेंगे?

बच्चों के पास बहुत अधिक ज्ञान है। कुछ दिन पहले ही बिहार के एक स्टूडेंट ने गूगल की गलतियों को निकाला था। जब उसने उनको मैसेज किया, तो गूगल ने उसको जवाब भी दिया। इसके लिए उसने अलग से कोई पढाई नहीं की थी।

मुझे महसूस होता है कि जिसकी जैसी रूचि है, यदि उसको खेल के क्षेत्र में आगे जाना है, तो शिक्षक को उस बच्चे को खेल के क्षेत्र में ही आगे ले जाना चाहिए, अगर विज्ञान में आगे जाना है, तो विज्ञान कि ही पढाई करवानी चाहिए, आदि। हम बच्चों से पूछते हैं कि उनकी रूचि क्या है, और उसकी रूचि के अनुसार, उसकी काबिलियत के अनुसार, अपने संसाधन के अनुसार हम कोशिश करते हैं कि उसको सबसे सबसे अच्छा मिले। हमारा बच्चा बहुत अधिक अंग्रेजी नहीं बोल पायेगा, लेकिन जब हमारा बच्चा आपके सामने खड़ा होगा, तो आपको लगेगा कि ये भारत देश का बच्चा है। इसमें discipline , नैतिकता, इसमें जो चीज़ होनी चाहिए भारत देश के बच्चों के लिए, वो चीज़ मैं देने का प्रयास कर रहा हूँ।

जो भी लोग ये इंटरव्यू देख रहे हैं, उन सबके लिए आपका क्या सन्देश है ?

मैं पूरी दुनिया के बच्चों और उनके अभिभावकों को बोलना चाहता हूँ पुनः वही जो मैंने अभी कहा। शिक्षा बहुत ज़रूरी है देश को आगे बढ़ाने के लिए। फिर मैं कहना चाहता हूँ कि भारत कोई एक जगह का नाम नहीं है। एक देश जो है, वो हमसे है। हर एक धड़कन में भारत है। उस धड़कन को मज़बूत करने के लिए, शिक्षा बहुत ज़रूरी है। शिक्षा के बिना देश आगे नहीं हो सकता। आप जहाँ भी हैं, बच्चों को मदद करें, शिक्षक को मदद करें, जो बच्चे पढ़ रहे हैं उनकी मदद करे। अपने देश को सुन्दर बनाना ज़रूरी है।

मेरा काम एक शिक्षक होने के नाते, अपने बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा देना, बच्चों का भी काम है कि वे अच्छी शिक्षा लें। हर एक नागरिक का अपना अपना दायित्व है, उसे ईमानदारीपूर्वक निभाना बहुत ज़रूरी है। मैं सभों से आग्रह करना चाहूंगा, कि आप जिस भी स्थिति में है, बच्चों की शिक्षा नहीं रुकना चाहिए। निश्चित तौर पे, जब बच्चा आगे बढ़ेगा, तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा।

इस साक्षात्कार का दूसरा भाग यहाँ है: