परीक्षा से डर लगता है? तो ये पढिए…

परीक्षा से डर किसे नहीं लगता? सब को लगता है!

पर क्या परीक्षा सच में इतनी भयावह/डरावनी होती है?

क्या आपको लगता है कि परीक्षा कोई राक्षस है, और आप पता नहीं कैसे उस से लड़ोगे?

तो फिर ये पढिए:

कभी नदी में नाव चलाते नाविक को देखा है? नदी उसकी नाव से बहुत बड़ी है, बहुत ताकतवर भी। उसका नदी पर कोई बस नहीं है। फिर भी, हर बार, नाविक नदी को सफलतापूर्वक पार करता है, और ठीक वहीं किनारे लगता है जहां वह लगना चाहता है। कैसे? 

नाविक नदी के बारे में नहीं सोचता। न उसकी विशालता के बारे में, न उसकी शक्ति के बारे में। नाविक सिर्फ अपने चप्पू के बारे में सोचता है। वह नदी को देखता है, और ये तय करता है कि अगला चप्पू उसे किस दिशा और वेग से चलाना है। बस, इतना भर। 

और इस तरह, एक एक चप्पू से, नाविक नदी को पार कर लेता है। हर बार। 

ये परीक्षा का system नदी के जैसा है।  तुम ये सोच सकते हो कि यदि यह इतना गहरा नहीं होता तो तुम इसकी दिशा बदल सकते थे। ये भी सोच सकते हो कि यह कितना शक्तिशाली है और तुम इस से लड़ने के लिए कुछ नहीं कर सकते। 

पर इस से तुम को लड़ना है ही नहीं। इसे पार करना है। न तुम इसकी दिशा बदल सकते हो न वेग। तुम्हारा दिमाग तुम्हारी नाव है और उसके विचार तुम्हारे चप्पू। तुम्हें बस ये सोचना है कि तुम अपने विचारों को किस काम लोगे। कैसे याद रखोगे और कितना। कैसे लिखोगे और कितना। बस, इतना भर तय करना है तुम्हें कि तुम आज क्या करोगे। हर रोज। बस, आज क्या करोगे। इतना भर। 

पर यह मुझे रोज करना पड़ेगा!

अगर किसी दिन चूक हो गई? ध्यान भटक भी तो सकता है!

कभी तुम चप्पू गलत भी चला सकते हो। नाव भटक जाएगी। अगर तुम कुशल हुए, तो उसे दोबारा सीध पर ले तो आओगे, पर उसी पड़ाव को पार करने में दोगुना समय लग जाएगा। इस लिए, हर गलत सोच का मूल्य तुम्हारा अपना समय है। तुम इस नदी को 15 दिन में पार करना चाहते हो, 20 दिन लग जाएंगे।

अगर 15 दिन में पार करनी है, तो हर चप्पू अपनी सटीक जगह पर चलना चाहिए।

और अंत में…

हजारों नाविक रोज़ सैकड़ों नदियां पार करते हैं। लाखों बच्चे हर साल परीक्षा देते हैं। ये कठिन है ही नहीं। एक बार नदी को अपना साथी समझ लो, तो ये सफर ऐसा हो जाता है जैसे दो हमराही हों। जब तक तुम नदी में हो, या तुम उस से लड़ सकते हो, या उसे अपना साथी बना सकते हो। या उसके भंवर पर दृष्टि अटका सकते हो, या उसकी सुंदर लहरों पर। उसकी अच्छाइयों के बारे में सोचोगे, तो चप्पू उसी ओर बढ़ेंगे। भंवर पर ध्यान दोगे, तो भंवर आप ही आ कर मार्ग में प्रस्तुत हो जाएंगे। 

नदी हमारे जीवन का अंग है।  हर इंसान को नाविक होना पड़ता है। तुम्हारा समय आ गया। पतवार उठाओ, चप्पू चलाओ, घाट बाट जोहते होंगे।