देहरादून में एक Residential Workshop हुआ था. पर इस Residential Workshop मे क्या खास है? यह Residential Workshop था सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए और इस से हुई शुरुआत बालकनामा की।
बालक नामा एक भारतीय समाचार पत्र है जो गली के बच्चों द्वरा प्रकाशित किया जाता है। बालक नामा सड़क पर रहने बच्चों के जीवन के अनुभवों पर आधारित है।
शुरुआत में बालक नामा हर महीने में दो पेज का edition publish करता था। पर अब बालक नामा हर महीने में 16 पेज का edition publish करता है। पर सिर्फ यही नहीं। अब बालक नामा डिल्ली से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक पहुंच चुका है। आइए बालक नामा के बारे में और जानने के लिए बात करते हैं किशन जी से। श्री बालक नामा का एडिटर हैं।
बालकनामा का जन्म कैसे हुआ था?
किशन जी – बालक नामा सड़क एवं कामकाजी बच्चों के अखबार है, जिसमें बच्चों की समस्याएं छपती हैं । बालक नामा की शुरुआत सन 2003 में हुई। और बढ़ते कदम संगठन से 35 बच्चों ने बालक नामा की शुरुआत की।
जैसे कि हम सब जानते हैं, सड़क पर रहने वाले बच्चों और कामकाजी बच्चों की बातें और समस्याएं सरकारों तक नहीं पहुंच पाती हैं।
इसलिए, बढ़ते कदम के बच्चों ने सोचा कि उनके लिए एक अखबार होना चाहिए, जिसमें बच्चे ही खबरें दें और बच्चे ही सब काम करें। ऐसे ही बालकनामा का जन्म हुआ।
बढ़ते कदम संगठन के बारे में कुछ बताइए
किशन जी – बढ़ते कदम एक सड़क एवं कामकाजी बच्चों का संगठन है। बढ़ते कदम का जन्म नौ जुलाई 2002 को हुआ। यह संगठन 35 कामकाजी बच्चों से देहरादून में शुरू हुआ था।
बालकनामा के पीछे क्या उद्देश्य है?
किशन जी – बालक नामा का उद्देश्य है कि जो भी बच्चे सड़क पर रहते हैं उन सब की अनेक समस्याएं होती हैं और इनकी आवाज सरकार तक नहीं पहुंच पाती है। इसीलिए बालक नामा अखबार के माध्यम से सड़क पर रहने वाले बच्चों की आवाज़ सरकारों और समाज तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।
और बालक नामा सड़क पर रहने वाले बच्चों की समस्याएं ढूंढता है और अखबार के माध्यम से लोगों, समाज, और सरकार तक पहुंचाता है।
बालकनामा से आप कैसे मिले?
किशन जी – मैं भी एक कामकाजी बच्चा हूं। मैं भी मेरा जीवन माता पिता के साथ बिता रहा था। और अचानक से सन 2017 में मेरे पिताजी, दादाजी, और चाचा जी का मृत्यु हो गई।
इसके कारण हमारे परिवार की जिम्मेदारियां हम पर पड़ गईं। इसलिए मुझे एक ठेली लगानी पड़ी। इससे आने वाले पैसे से मेरा घर का और मेरा खर्चा होता था।
यहां लगाते लगाते कई दिन और महीने हुए थे। और एक दिन मैं एक इंसान से मिला जिसने मुझे बढ़ते कदम के बारे में जानकारी दी कि ऐसा एक संगठन है और कामकाजी बच्चों को लेकर वे काम करते हैं। उस ने कहा, “आप भी आया करो।”
मैं अगले दिन ही बढ़ते कदम से जुड़ा।
उन से जुड़ने के बाद मैंने बालक नामा अखबार के बारे में जाना।बालक नामा से जुड़ने के बाद मैं एक बातूनी reporter बना और उसके बाद लिखने वाला reporter बना और अब मैं एक editor हूं।
आपकी टीम में कौन कौन है?
किशन जी – हमारी टीम में बातूनी reporter और लिखावट reporter होते हैं और editor जो आपके सामने है।
हमारे बालक नामा में बातूनी reporter 45 होते हैं।
सब अलग-अलग जगह पर रहते हैं, लखनऊ, दिल्ली, और आगरा जैसे।
और हमारे दो लिखावट रिपोर्टर हैं जो लखनऊ में हैं । दिल्ली में 2 Field reporter हैं और फिर एक editor है।
एक edition केसे बनता है?
किशन जी – हमारे बालक नामा का हर महीने एक एडिशन छपता है।
और हमें हर महीने फर्स्ट एक्शन प्लान करना होता है।
एक्शन प्लान के माध्यम से हम फील्ड में जा कर बच्चों से बात-चीत करते हैं।
हर महीने की 25 तारीख को editorial meeting होती है।
इस editor मीटिंग में हमारे लिखावट reporter, बातूनी reporter सब मिलकर editorial meeting के माध्यम से पहले क्या खबर आता है और उसके बाद क्या कम पर आता है का निर्णय करते हैं।
हमारे पहले पेज में कवर स्टोरी छपता है। और कवर स्टोरी में क्या खबर आनी चाहिए उसको तय करते हैं। फोटो पर भी डिसाइड करते हैं और क्या फोटो लगाना है वरना फोटो नहीं है तो चित्र बनाकर उस का इस्तेमाल करते हैं।
आप आपके संगठन की सालगिरह/ एनिवर्सरी को कैसे मनाते हैं?
किशन जी – हम 9 जुलाई को अपनी सालगिरह मनाते हैं। और कल, ९ जुलाई २०२२, हमारा स्थापना दिवस है। हम बच्चों से मिलेंगे और मुलाकात करेंगे, बढ़ते कदम पर बात करेंगे।
बच्चे अपनी भावनाएं और विचार, वे बढ़ते कदम के बारे में बोलते हैं। और कविता सुनेंगे और नाचेंगे और केक काटकर के अपने स्थापना दिवस को मनाते हैं।
बालकनामा के भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
किशन जी – हमारा बालक नाम अखबार महीने में निकलता है। और इसमें तो समस्याएं आ सकती हैं तो हमारा कहना है कि यह रोजाना निकले।
हमारे पाठकों के लिए आप कोई संदेश देना चाहेंगे?
किशन जी – वहां रहने वाले जो कामकाजी बच्चे हैं और सरकार है और समाज है हम उनके लिए संदेश देना चाहते हैं कि बच्चे मजबूरी में काम करते हैं। उस पर Guidelines निकाली जाएं ताकि बच्चे काम ना करें, और अच्छे से रहें।
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